Tuesday, January 25, 2011

गण और तंत्र

आज हम गणतंत्र के 61 वें पड़ाव पर आ गए हैं. लेकिन आज भी 'तंत्र' से 'गण' काफी दूर हैं. वे तंत्र के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं. इतना ही नहीं, आज भी समाज में दो धाराएं बह रही हैं. इंडिया और भारत में हम बटे हुए हैं. अमीरी और गरीबी के बीच की खाई गहरी से गहरी होती जा रही है. जब तक यह खाई नहीं पाटी जायेगी, तब तक इस गणतंत्र का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. ऐसे में हम केवल गणतंत्र दिवस तो मनाते रह जायेंगे, लेकिन लोगों के बीच दूरियां बढ़ती ही चली जायेगी. सो, इस दिन केवल जलेबी नहीं बाटें, बल्कि हमलोग उसकी मिठास को अपने अन्दर भी उतारें. तभी सही मायने में गणतंत्र आयेगा. चलिए, कम से कम इस गणतंत्र पर ही सही, संकल्प लें कि गण और तंत्र के बीच की दूरियां मिटेंगी.   

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